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________________ पू. कनकसूरिजी, पू. देवेन्द्रसूरिजी आदि प्रतिक्रमण आदि की विधि के चुस्त आग्रही थे । इन छोटे बाल मुनियों को तो (पू. कलाप्रभसूरिजी, पू. कल्पतरुविजयजी) तब अत्यन्त छोटे थे । उन्हें नींद आ जाती तो कई बार पुनः प्रतिक्रमण कराया था । क्या आप खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करते हैं ? मांडली में करते हैं ? क्या आप विधि पूर्वक करते हैं ? अविधि से किये गये अनुष्ठान फलदायी नहीं बनते । मरणान्त कष्ट सहन करने वाला योद्धा ही युद्ध में जा सकता है, जीत सकता है । यहां भी अभी समय कष्ट सहेंगे तो ही मृत्यु में समाधि रहेगी । हे प्रभु ! तू अंधकार में दीपक है । तू निर्धन का धन है । तू भूखे का अन्न है । तू प्यासे का जल है । तू अन्धे की लकड़ी है । तू थके व्यक्ति की सवारी है । तू दुःख में धैर्य है । तू विरह में मिलन है । तू जगत् का सर्वस्व है । कहे कलापूर्णसूरि २ - कळळ २९७
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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