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________________ यही मुझे समझ में नहीं आता । एक 'नमुत्थुणं' की महिमा तो जान लो । जिस पर पू. हरिभद्रसूरिजी जैसों ने 'ललित विस्तरा' जैसी टीका की रचना की, जिसके पठन से सिद्धर्षि गणि जैन-दर्शन में स्थिर बने, जिस का पाठ इन्द्र स्वयं भगवान के पास करते हैं, उस 'नमुत्थुणं सूत्र' की पवित्रता कितनी, महिमा कितनी ? नमुत्थुणं की स्तोतव्य संपदा, उपकार संपदा, स्वरूप संपदा आदि संपदाओं को बताने वाले पद पढ़ो तो आप नाच उठोगे । भगवान की महिमा आप जान सकोगे । जिस क्षण आप भगवान को सम्मुख लाते हैं, उसी क्षण भगवान की कृपा सीधी ही उतरने लगती है। पानी और प्रकाश के साथ जोड़ कर आप नल और लाईट की स्विच के द्वारा उसे प्राप्त कर सकते हैं । उस प्रकार भगवान के साथ जोड़ कर आप अनन्त ऐश्वर्य के स्वामी बन सकते हैं। आवश्यक है केवल जोड़ने की । जोड़ने वाले को ही योग कहते हमारे ये पवित्र सूत्र जोड़नेवाले माध्यम हैं । अकाल के समय भी भर ग्रीष्म ऋतु में हरा-भरा वृक्ष देखो तो समझ लेना - उसकी जड़ पाताल के पानी के साथ जुड़ी हुई हैं। नल खोलते ही पानी आये तो समझें कि उसका सरोवर के साथ जोड़ा हुआ है । स्विच दबाते ही प्रकाश हो जाये तो समझें कि उसे 'पावर हाउस' के साथ जोड़ा हुआ है । उसी प्रकार से किसी महात्मा में आप कोई विशिष्ट ऐश्वर्य देखें तो समझें कि उनकी चेतना परम चेतना के साथ जुडी हुई है। प्रभु की महिमा समझ में आये और हृदय भावित बने उसके लिए पालीताणा चातुर्मास में 'ललित विस्तरा' ग्रन्थ रखने का विचार है । सबको चलेगा न ? प्रतिक्रमण, चैत्यवन्दन आदि सूत्रों में आप रूचि लेना सीखे । विधिपूर्वक करें, आदि बातों के लिए मेरा यह प्रयास २९६ooooooooooooooooom
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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