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प्रभु दर्शन में लीनता, वि.सं. २०५३, कोइम्बत्तूर
२४-५-२०००, बुधवार ज्ये. कृष्णा-६ : पालीताणा
महान् तैराक भी अकेला महासागर को तैर कर पार नहीं कर सकता । महान् साधक भी यह भव-सागर अपने आप तैर नहीं सकता । भक्ति रूपी जहाज का, संयमरूपी जहाज की शरण लेनी ही पड़ेगी ।
* पन्द्रह दुर्लभ वस्तुओं में केवल तीन वस्तु ही बाकी हैं - क्षपकश्रेणी, केवलज्ञान एवं मोक्ष । अब यदि ध्यान नहीं रखा तो किनारे आई हुई नाव डूब जायेगी ।
* कितनेक व्यक्ति तो कार्य प्रारम्भ ही नहीं करते । कितनेक कार्य प्रारम्भ तो कर देते हैं, परन्तु बीच में छोड़ देते हैं ।
कितनेक व्यक्ति कार्य प्रारम्भ करते हैं और पूर्ण भी कर डालते
हैं ।
हम किस के समान हैं ? सिंह की तरह संयम ग्रहण करके सिंह की तरह पालन करने वालों का यहां काम हैं । यहां सिंह का सीना चाहिये । सियार की छाती वालों का यहां काम नहीं हैं ।
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१७ कहे कलापूर्णसूरि - २