SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवास्तिकाय अर्थात् समस्त जीवों का समूह । निगोद से लगा कर सिद्ध तक के समस्त जीव तो अनन्त हैं । ओह ! जीवास्तिकाय के रूप में हम सब एक हैं, यह सोचकर हृदय नाच उठा । एक भी भारतीय जवान का आप अपमान करो तो सम्पूर्ण भारत सरकार का अपमान है । उस प्रकार एक जीव को आप कष्ट पहुंचाते है तो समग्र जीवों को कष्ट पहुंचाते हैं, क्योंकि जीवास्तिकाय के रूप में सब एक हैं । 8 चार कथाएं चार संज्ञायें बढ़ाती हैं। स्त्री-कथा मैथुन - संज्ञा बढ़ाती है । आहार-संज्ञा बढ़ाती है । - भक्त-कथा देश - कथा की बात सुनकर युद्ध आदि का भय लगता है । राज-कथा परिग्रह - संज्ञा बढ़ाती है । (राजाओं के वैभव का वर्णन सुनकर वैसी - वैसी वस्तुएं लाने की इच्छा होती है ।). - - भय-संज्ञा बढ़ाती है (पड़ोसी देशों की सेना कहे कलापूर्णसूरि २ WWWWW - क २९१
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy