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हम ऐसे ही हैं । क्रोध आदि दोष रूपी सांप-बिच्छुओं का संग्रह करते रहते हैं और फिर प्रसन्नता एवं निर्भयता के लिए इच्छा रखते हैं ।
दूध-दही-घी-छास दूध - मैं महान् हूं। कहा है - 'अमृतं क्षीर-भोजनम्' । दहीं - जाने दे अब, मधुर पदार्थों में मैं प्रथम हूं। 'दधि मधुरम्' घी - आप दोनों चुप रहें । सार तो मैं ही हूं। 'घृतमायुः'
छास - आप सब मेरी महिमा भूल गये ? कहा है - 'तकं शक्रस्य दुर्लभम्'
आदमी - आप सब व्यक्तिगत महिमा गाना छोड़ें और सब TR. साथ मिलकर बोलें - 'हम गोरस हैं ।'
(२७४ 08 GOOGowwwwwwws कहे कलापूर्णसूरि - २