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पू.पं.श्री भद्रंकरविजयजी
१७-५-२०००, बुधवार
वैशाख शुक्ला - १४ : पालीताणा
सकल जगत् के हितैषी भगवान ने सुख के मार्ग के रूप में मोक्ष का मार्ग बताया है ।
है ।
इस धर्म का आधार लेने वाला दुर्गति में नही जाता । समता (सामायिक) धर्म का सार है । चिन्तामणि मिलते ही दरिद्रता का भय नष्ट हो जाता है, उस प्रकार धर्म-रत्न मिलने पर संसार का भय नष्ट हो जाता है ।
धर्म स्वयं सुखमय है, अन्यों को सुखमय बनाने वाला
अधर्म स्वयं पीड़ामय है, अन्यों को पीड़ित करनेवाला है । अधर्म का फल किसी को प्रिय नहीं है ।
धर्म का फल किसी को प्रिय नहीं हो, ऐसा नहीं है । परन्तु आश्चर्य की बात है । जीव धर्म करता नहीं है और अधर्म से हटता नहीं है । सुख का अर्थी होने पर भी जीव धर्म नहीं करता (सुख धर्म से ही मिलता है ।)
हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह ही बुरे हैं ऐसी बात नहीं है, क्रोध आदि इनसे भी बुरे हैं । वस्तुतः क्रोध आदि से
कहे कलापूर्णसूरि- २
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