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सचमुच तो वह राधावेध से भी कठिन है ।
* क्षमा गुण तो आया, परन्तु साथ ही मृदुता नहीं आई तो क्षमा कर के भी अभिमान आयेगा मैं कैसा क्षमाशील हूं ? यह अहंकार आठ फण वाला सांप है । जाति, लोभ आदि आठ मदस्थान आठ फण हैं ।
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मृदुता को सहज बनाने के लिए ऋजुता की आवश्यकता होगी । इस प्रकार दसों यतिधर्मों के क्रम में रहस्य है ।
समस्त गुणों की आवश्यकता हो तो एक भगवान को पकड़ लो । भगवान आयेंगे तो कोई दोष खड़ा नहीं रहेगा । सभी गुण आ जायेंगे । प्रभु हमारे बन गये तो प्रभु के गुण हमारे ही बन गये ।
जहां सिंह हो वहां क्या अन्य प्राणी आ सकते हैं ? जिस हृदय में प्रभु हो वहां क्या दोष आ सकते हैं ?
आप केवल प्रभु-भक्त बन कर देखें ।
इस काल में यही एक मात्र आधार है । बाकी कोई वैसे तप, जप अथवा अन्य कोई अनुष्ठान हम कर नहीं सकते । कम से कम मेरे लिए तो इस समय प्रभु ही एकमात्र आधार हैं । सच्ची तरह से प्रभु-भक्ति हो तो दोष रहेंगे ही नहीं । "प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे ।"
समस्त दोषों को नष्ट करने वाले केवल एक प्रभु हैं, ऐसा उपाध्यायजी यशोविजयजी म.सा. जैसे अनुभवियों को समझ में आया है । हमें यह कब समझ में आयेगा ? जब यह बात समझ में आयगी तब ही साधना प्रारम्भ होगी ।
प्रभु की स्तवना से प्रसन्नता होती ही है । यह बात
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स्पष्ट है ।
" अभ्यर्चनादर्हतां मनःप्रसादस्ततः समाधिश्च । ततोऽपि निःश्रेयसमतो हि तत्पूजनं न्याय्यम् ।"
तत्त्वार्थ कारिका, उमास्वातिजी कोई पगला, घर में सांपो और बिच्छुओं को एकत्रित करता रहे और कहे कि मेरे घर में निर्भयता नहीं है, ऐसे व्यक्ति को क्या कहा जाये ?
कहे कलापूर्णसूरि २
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