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________________ * तीर्थ अर्थात् तीर्थंकर का मुख्य कार्यालय । हम उसमें कार्यकर्ता हैं। जिनशासन प्राप्त किये हुए एक आत्मा का सम्पर्क होने पर काम हो गया, समझें । उस आत्मा का कल्याण होगा ही। अनार्य देश के आर्द्रकुमार ने अभयकुमार से सम्बन्ध बांधा जिससे आर्द्रकुमार का काम हो गया । मयणा से सम्बन्ध होने पर कुष्ठ रोगी श्रीपाल महान् श्रीपाल बना । मयणा की माता का गुरु मुनिचन्द्रसूरिजी के साथ सम्बन्ध हुआ और वह सम्यक्त्वी बन गयी । जिनशासन को प्राप्त करनेवाले के साथ सम्बन्ध हो और उसका कल्याण न हो यह हो ही नहीं सकता । * चार प्रकार के सर्वज्ञ - १. सर्वज्ञ । २. श्रुतकेवली । ३. भगवान द्वारा कथित तत्त्वों के प्रति श्रद्धालु । ४. भगवान द्वारा कथित तत्त्वों के प्रति श्रद्धा रखकर तदनुसार आचरण करने वाले । इस अपेक्षा से कन्दमूल का त्याग करनेवाला भी सर्वज्ञ कहलाता * भगवान के शासन में हम प्रविष्ट हुए तो यह अर्थ हुआ कि अब मोह की गुलामी नहीं रहेगी । प्रभु, प्रभु-शासन, प्रभु का आगम मिल गया फिर चिन्ता कैसी ? कर्म सत्ता का भय क्यों ? प्रभु-प्रेमी को विश्वास होता है कि अब ये बिचारे कर्म क्या कर सकेंगे ? * संयत के दस धर्म हैं - क्षमा आदि १० धर्म । उनके साथ असंयत के क्रोध आदि १० अधर्म हैं । दस यतिधर्म दस अयतिधर्म क्षान्ति क्रोध मार्दव मान आर्जव माया (२७०Booooooooooooooooo00 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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