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या नवकार जापा
१६-५-२०००, मंगलवार वैशाख शुक्ला-१३ : पालीताणा
* जगत् में कितने इष्ट सम्बन्ध (माता आदि के) हैं, वे सब भगवान में घटित होते हैं । हेमचंद्रसूरिजी कहते हैं - 'त्वमसम्बन्धबान्धवः ।' भगवान सम्बन्ध रहित बन्धु हैं । वे मांगे बिना देने वाले हैं, बिना बुलाये बुलानेवाले हैं। इसीलिए प्रकृति उन्हें तीर्थंकर के सर्वोच्च पद पर बिठाती है, चाहे उनकी इच्छा हो या न हो ।
तीर्थंकर पद सत्ता की लालसा से भगवान ने प्राप्त नहीं किया, परन्तु परम करुणा-रस से उन्हें तीर्थंकर पद मिला है । परोपकार को उन्हों ने इतना भावित बनाया कि वह उनके अंग-अंग में समा गया। हरिभद्रसूरि जैसे तो कहते हैं कि 'आकालमेते परार्थव्यसनिनः ।' प्रभु सदा के लिए (सम्यग्दर्शन से पूर्व भी) परोपकार-व्यसनी होते हैं । निगोद में भी यह गुण होता है चाहे वह अव्यक्त हो, परन्तु भीतर विद्यमान होता है । जिस प्रकार खान में रहा हुआ हीरा मिट्टी जैसा ही पड़ा हो, किसी को पता भी न लगे कि यह हीरा होगा । उस प्रकार भगवान निगोद में हो तब भी उनका परोपकार रूप आभिजात्य गुमाते नहीं है । बाहर आने पर केवल व्यक्त होता है । (कहे कलापूर्णसूरि - २00 oooooooooooooo80 २६९)