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मुक्ति
लोभ संयम
असंयम सत्य
असत्य शौच
अपवित्रता आकिंचन्य
परिग्रह ब्रह्मचर्य
अब्रह्म * मृत्यु को वही जीत सकता है, जिसने व्रत की विराधना नहीं की हो । कदाचित् विराधना हो चुकी हो तो आलोचना से शुद्धि कर लेना, यदि मृत्यु के समय समाधि प्राप्त करनी हो । लक्ष्मणा साध्वीजी थोड़े से शल्य के कारण ही कितने ही समय तक संसार में परिभ्रमण कर चुके हैं, यह हम जानते हैं ।
___ हम किसी को कहते तो नहीं हैं, परन्तु स्वीकार भी करते नहीं हैं । हमारे शल्यों का उद्धार कैसे होगा ? समाधि-मरण के लिए विशेषतया निःशल्यता चाहिये ।
आराधना पुन्य को पुष्ट करती है । विराधना पुन्य को निर्बल करती है ।
* संयम की सुगन्ध मिलते ही लोग झुकते आयेंगे। लोग आप का वक्तृत्व या पाण्डित्य नहीं देखेंगे, परन्तु संयम देखेंगे।
आपके पास लोग निर्मल संयम का सरोवर देखेंगे तो वे पिपासु बनकर दौड़ते हुए आयेंगे । इसके लिए कोई विज्ञापन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
केवल आपके दर्शन से, नाम-श्रवण से या पत्र के द्वारा मार्गदर्शन मात्र से साधक आत्मा झूम उठेगी ।
__ पू.पं. भद्रंकरविजयजी म. पत्रों के द्वारा अनेक जिज्ञासुओं को मार्गदर्शन कराते थे । उन्हों ने मुझे भी पत्रों के द्वारा अनेक बार मार्ग-दर्शन दिया है।
वि. संवत् २०२५ में अहमदाबाद की विद्याशाला में पू. देवेन्द्रसूरिजी विद्यमान थे । व्याख्यान आदि का उत्तरदायित्व मुझ पर था । रविवार को दो बार व्याख्यान रहता था । तब पू.पं. भद्रंकरविजयजी महाराज ने लिखा था कि इतना परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है। (कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000 २७१)