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________________ उसे भूख, प्यास, धूप लगने लगे फिर भी उसने खाया-पिया नहीं या वह छाया में गया नहीं, क्योंकि मन कहे वैसे करना नहीं है । खडा था फिर भी बैठा नहीं, क्योंकि मन कहे उस प्रकार करना नहीं हैं । इस प्रकार उसे ध्यान लग गया । मन की बात नहीं मानने का दृढ संकल्प उसे मन के उस पार ले गया । अल्प समय में उसे केवलज्ञान हो गया । 'भगवान ने कहा है उस प्रकार मुझे करना चाहिये' - इतना संकल्प यदि हम कर लें तो बेड़ा पार हो जाये । खिड़की एवं द्वार द्वार : मैं बड़ा हूं। मेरे द्वारा ही प्रवेश एवं निर्गम संभव है । मेरा जगत् में मान है । खिड़की : किस बात की शेखी मारता है ? तू चाहे जितना बड़ा हो तो भी मालिक को तेरा भरोसा नहीं है। रात्रि में या बाहर जाये तब तुझे बंध कर दिया जाता है, क्योंकि तू चोर-डाकुओं को रोक नहीं सकता । मैं तो मालिक की परम विश्वासु हूं । अतः मुझे सदा खुली रखी जाती है और मैं मालिक को सदा हवा एवं प्रकाश देती हूं। (कहे कलापूर्णसूरि - २wooooooooooooooooo00 २६३)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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