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अंतिम दर्शन, शंखेश्वर
९-५-२०००, मंगलवार वैशाख शुक्ला-६ : पालीताणा
* मृत्यु किसी भी प्रकार से रूकती नहीं है । उसका सामना होता नहीं है। यह अनिवार्य है, परन्तु इसे सुधारी जा सकती है । मृत्यु उस की ही सुधरती है, जिसका जीवन सुधरता है । अभी से समाधि देना सीखोगे, थोड़े-थोड़े कष्ट सहन करते रहोगे, प्रत्येक परिस्थिति में मन-वचन-काया को सम रखना सीखोगे तो अन्त में समाधि आयेगी ।
* जड़ होते हुए भी चन्दन अपना स्वभाव (शीतलता) नहीं छोड़ता, तो क्या मुमि अपना स्वभाव छोड़ देगा? ऐसी समता तक पहुंचने की अपनी तैयारी न हो तो भी इस समय उसका थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करना है ।
यदि समता प्राप्त करने का प्रयास नहीं करे तो भव-भ्रमण बढ़ जायेगा । हमें मालूम नहीं है कि त्रस काय में आये कितने वर्ष हो गये हैं ? परन्तु ज्ञानियों ने मौका दिया कि २००० सागरोपम में आप मोक्ष में पहुंच जाओ । यदि यह काम नहीं किया तो पुनः एकेन्द्रिय में जाना पड़ेगा । ___'योगसार' में उल्लेख है कि केवलज्ञान समता के बिना नहीं (२६०000000mmmmmmmmmmm कहे कलापूर्णसूरि - २)