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तब तक प्रकाश नहीं होता । जब तक हम प्रभु के सम्मुख नहीं होंगे, तब तक हम प्रभुमय नहीं बन सकते ।
_ 'भगवान कुछ करते नहीं हैं । हमारा उद्यम (पुरुषार्थ) काम करता है' - यदि ऐसा मानोगे तो आप भक्त कदापि नहीं बन सकोगे । ग्यारह गणधरों की तैयारी नहीं थी, परन्तु समवसरण में गये और काम हो गया । अब कहोगे न कि गणधर-पद का दान भगवान ने किया । हमारे जैसे भटकते रहे ।
* भगवान के साधुओं की अपेक्षा साध्वीजीयों की संख्या अधिक थी । उनकी संख्या ३६००० थी । क्या इस का कारण जानते हैं ?
स्त्रियों में कोमलता अधिक होती है। कोमल हृदय समर्पित हो सकता है । समर्पण ही स्त्रियों को मुक्ति तक पहुंचाता है । भगवान के साधु तो ७०० ही मोक्ष में गये, परन्तु साध्वीजी १४०० मोक्ष में गई । इसका कारण शायद ये ही होगा ।
चार शरणों का चार कषायों को टालने के लिए सन्देश
अरिहंत - क्रोध त्याग कर क्षमाशील बनो । देखो, मैंने अपने जीवन में शत्रुओं के प्रति भी क्रोध नहीं किया ।
सिद्ध - मान त्याग कर नम्र बनें । छोटों को भी बहुमान भाव से देखों । मैं निगोद के जीव को भी अपना स्वधर्मी बन्धु मानता हूं।
साधु - माया छोड़कर सरल बनें । सरल होता है वही साधु बनता है और उसकी ही शुद्धि होती है ।
धर्म - लोभ त्याग कर सन्तोषी बनें । मैं ही परलोक में चलनेवाला वास्तविक धन हूं। मुझे जो अपनायेगा वह सन्तोषी
SR बनेगा।
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