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प्रभुदशन मानता प्रभु दर्शन मग्नता
५-५-२०००, शुक्रवार
वैशाख शुक्ला २ : पालीताणा जह अनियमियतुरए, अयाणमाणो नरो समारूढो । इच्छेइ पराणीयं अइक्वंतु जो अकयजोगो ॥ ११७ ॥ (७) मरण-गुण
* तीर्थ में नवीन तीर्थंकर उत्पन्न करने की शक्ति है । इसीलिए तीर्थंकर स्वयं तीर्थ को प्रणाम करते हैं - "णमो तित्थस्स ।" जगत् को यह बताते है कि मेरी अपेक्षा भी यह तीर्थ अधिक पूजनीय एवं नमनीय है ।
मोह का जोर हटने पर तीर्थ के प्रति बहुमान उत्पन्न होता है । मोह बढ़ने पर तीर्थ के प्रति बहुमान घटता है । तीर्थ का आदर हमें सभी जीवों पर आदर कराता है ।
प्रभु के साथ अभेद तो ही संभव है - यदि सभी जीवों के साथ अभेद हो ।
प्रभु कहते हैं - मेरा परिवार बहुत बड़ा है । केवल १४ हजार साधु, ३६ हजार साध्वी, एक लाख उनसठ हजार श्रावक
और तीन लाख से अधिक श्राविकाएं - इतना ही परिवार नहीं है । समग्र जीव-राशि मेरा परिवार है ।
एक भी जीव का अपमान किया तो प्रभु का अपमान हुआ कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000 २४३)