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________________ दक्षिण भारत में शान्तिस्नात्र २-५-२०००, मंगलवार वै. कृष्णा-१३ : पालीताणा * अनन्त करुणा-सागर भगवान महावीर स्वामी ने कर्म से जकड़े हुए जीवों को इस संसार में तनिक भी सुख नहीं होने का कहा है । संसार में सुख खोजना अर्थात् रेगिस्तान में पानी खोजना, मृगतृष्णा में पानी खोजना । हिरन दूर-दूर देखता है - कितना पानी ! मैं वहां जाऊंगा और अपनी प्यास बुझाऊंगा। बहुत दौड़ता है परन्तु पानी नहीं मिलता । शायद थोड़ी दूरी पर पानी होगा - यह सोचकर वह पुनः दौड़ता है, परन्तु पानी नहीं मिलता । उसी प्रकार से विषय हमें अत्यन्त दौड़ातें हैं परन्तु सुख प्रदान नहीं करते । * संसार का स्वभाव दुःखमय है उस प्रकार धर्म का स्वभाव सुखमय है । इन जीवों को आनन्द प्रदान करने के लिए ही भगवान का अवतार है । 'जगानंदो' प्रभु का ही विशेषण है । जब तक राग-द्वेष होता है तब तक केवलज्ञान नहीं होता । ये राग-द्वेष ही अपनी आत्मा को मलिन बनाते हैं। ये ही अपने आनन्द को रोकते हैं । (२३२ 0amasoo m कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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