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जिस समय उसकी स्मृति आयें, उसी समय निन्दा करनी चाहिये ।
हमें भी भगवान ने कैसा शस्त्र दिया है ? भूल हो जाये, परन्तु भूल होने पर पश्चाताप करके प्रायश्चित करो तो पाप से छूट सकते हैं । यह न करो तो भव-भ्रमण होता है ।
'पडुपन्नं संवरेमि' पापमय अतीत की निन्दा करनी है उस प्रकार पापमय वर्तमान चित्त का संवर करना है और भविष्य का पच्चक्खाण लेना है।
भूत की निंदा, वर्तमान का संवर और भविष्य का प्रत्याख्यान करने का है ।
जानने योग्य दस बातें १. एक बाल के अग्र भाग में आकाशास्तिकाय की असंख्य श्रेणि । २. एक श्रेणि में असंख्य प्रतर । ३. एक प्रतर में निगोद के असंख्य गोले । ४. एक गोले में असंख्य शरीर । ५. एक शरीर में अनन्त जीव । ६. एक जीव में असंख्य प्रदेश । ७. एक प्रदेश में अनन्त कार्मण वर्गणा । ८. एक वर्गणा में अनन्त परमाणु । ९. एक परमाणु में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श के अनंत पर्याय । १०.एक पर्याय में केवलज्ञान के अनन्त पर्याय ।
कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000 २३१)