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________________ क्षीरकदंबक गुरु ने तीनों को कहा था - इस मुर्गे का वध करना परन्तु जहां कोई न देखता हो वहां वध करना । पाप करने की छूट भी जहां कोई न देखे वहां । नारद को लगा, "मुझे भगवान देख रहे हैं, मैं मुर्गा कैसे मार सकता हूं?" अन्य दोनों को यह विचार नहीं आया । अब आपको कितने देख रहे हैं ? आपको अनन्त सिद्ध, बीस विरहमान, दो करोड़ केवली - ये सभी देख रहे हैं । तो हम कैसी प्रवृत्ति करेंगे ? हम नारद के समान हैं या अन्य दो विद्यार्थियों के समान हैं ? * इस चारित्र का बराबर पालन करें तो मोक्ष का सर्टिफिकेट (प्रमाण-पत्र) प्राप्त हुआ कहलायेगा । आपको दीक्षा, बड़ी दीक्षा प्रदान की, जोग कराये, अतः भगवान की ओर से प्रमाणपत्र दिया गया कहलायेगा । सम्यग्दर्शन प्राप्त होने पर आप मोक्ष के अधिकारी बन गये । संघ में कोई यात्री अपना 'पास' खो डाले तो उसे कोई जिमायेगा नहीं, प्रभावना भी नहीं देगा । हम सम्यग् दर्शन का सर्टिफिकेट खो देंगे तो मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। इसीलिए कहता हूं - इसे संभालना । प्राप्त किये हुए महाव्रतों को बराबर संभालना । रोहिणी की तरह दूसरों को भी देना । पांच समितियों और तीन गुप्तियों का पक्का पालन करोगे तो यह चारित्र रूपी 'पास' बराबर संभाल पाओगे । * कुमारपाल महाराजा ने भूतकाल में मांसाहार किया था । एक बार घेवर खाते समय उसमें मांस जैसा स्वाद आया और वे चौंके - 'मुझे यह याद क्यों आया ?' घेवर में मांस की स्मृति हुई, इसका प्रायश्चित दीजिये । हेमचन्द्रसूरिजी ने प्रायश्चित में ३२ जिनालयों का निर्माण कराने का कहा और ३२ दांतो को दण्ड स्वरूप 'योग-शास्त्र' के १२ और 'वीतराग स्तोत्र' के २० प्रकाश का नित्य स्वाध्याय करने को कहा । अइयं निंदामि = गन्दी वस्तुएँ त्याग दी हों तो भी याद आती हैं । तो इस समय यह मेरी पापी आत्मा नहीं हैं । इस समय तों मैं भगवान का साधु हूं। हो चुके पापों की निन्दा करता हूं। (२३०00wooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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