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________________ सामायिक चारित्र का ऐसा पालन करना चाहिये कि जो आपको मुक्ति दिलाये । कदाचित् मुक्ति नहीं दिलाये तो भी मुक्ति के सुख यहीं दिलाये । _ 'मुक्ति थी अधिक तुझ भक्ति मुझ मन वसी ।' भक्ति में ऐसे सुख का अनुभव हो कि उसमें ही मुक्ति प्रतीत हो । भगवान महावीर को गौतमस्वामी ने पूछा, 'मेरा मोक्ष कब है ?" भगवान ने बताया, 'मेरा राग छोड़ ।" परन्तु केवलज्ञान के लिए प्रभु की भक्ति छोड़नी पडे, यह गौतमस्वामी अनुचित मानते थे । गौतम स्वामी ने प्रभु की भक्ति के लिए केवलज्ञान को छोड़ दिया । परन्तु क्या प्रभु गौतम स्वामी को केवलज्ञान प्रदान किये बिना गये ? प्रभु यह भी जानते थे कि इस भक्ति से ही गौतम को केवलज्ञान होगा । इसीलिए प्रभु ने उन्हें देवशर्मा को प्रतिबोध देने के लिए भेजा था । कभी मन में यह विचार आता है कि अपना जन्म महाविदेह में क्यों नही हुआ ? परन्तु यदि इसी परिणति में अपना जन्म महाविदेह में हुआ होता तो वहां साक्षात् भगवान की हम घोर आशातना करते और उससे घोर पाप बांधते । इसीलिए हमारा जन्म इस भरतक्षेत्र में हुआ है । भरतक्षेत्र में जन्म हुआ यह भगवान के द्वारा हमारी परीक्षा है - मेरे विरह में वह भक्ति करता है या नहीं ? प्रभु के विरह में भी यदि हम उत्तम प्रकार से चारित्र का पालन करेंगे तो फिर महाविदेह क्षेत्र में हमारा नम्बर लग जायेगा । __इस काल में मोक्ष नहीं है, परन्तु मोक्ष-मार्ग तो है न ? भले ही महाविदेह होकर वहां जाना पड़ता हो । टिकट का आरक्षण करा लो । सीधी गाडी नहीं मिले तो भी जंक्शन आये वहां हमें उतरना नहीं पड़ेगा । वह डब्बा ही वहां जुड़ जायेगा । * भगवान आपको देखते हैं कि नहीं? वे आपको चौबीसों घंटे देखते हैं कि थोड़े ही घंटे देखते हैं ? उनसे आप कुछ नहीं छिपा सकते । भगवान मुझे निरन्तर देख रहे हैं - यदि यह भाव रहे तो क्या आपसे कोई अकार्य होगा ? (कहे कलापूर्णसूरि - २ 60saa २२९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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