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________________ चारित्राचार क्या वस्तु है ? प्रणिधान योग से युक्त है। प्रणिधान आशय है । (पांच आशय है ।) आशय मन का व्यापार है और योग-मन, वचन, काया की प्रवृत्ति है। पांच आशय बताये हैं जिनमें प्रणिधान अर्थात् दृढ संकल्प । इन समिति-गुप्ति का पालन मुझे करना ही है। उसमें जितनी कच्चाई होगी, चारित्र में उतनी कच्चाई होगी । ऐसा प्रणिधान हो तो ही प्रवृत्ति होती है । प्रणिधान युक्त चारित्राचार चाहिये । क्षण भर भी प्रणिधान नहीं जाना चाहिये । प्रणिधान जितना सुदृढ होगा उतनी उन्नति दृढ होगी । पन्द्रह-बीस किलोमीटर का विहार हो तो कितनी तीव्रता से चलोगे ? और अल्प विहार हो तो कितने वेग से चलोगे ? निर्णय करके चलो न ? यह निर्णय ही प्रणिधान है । ये सब बातें यहां लगायें । विहार का निर्णय करके फिर बीच में कहीं रूकोगे ? यदि दृढ संकल्प हो तो क्या समिति गुप्ति में प्रमाद होगा ? इस वाचना के श्रवण से दृढ संकल्प करें कि मैं अब इन समिति-गुप्तियों का दृढतापूर्वक पालन करुंगा । विश्वास रखें १. भगवान की भक्ति पर । २. आत्मा की शक्ति पर । ३. शुद्ध आचार की अभिव्यक्ति पर । टूटे वह पांव... टूटे वह पांव जिसको न तेरी तलाश हो, फूटे वह आंख जिसको नहीं जुस्तजू तेरी; वह घर हो बेचिराग जहां तेरी जू न हो, वो दिल हो दाग जिसमें न हो आरजू तेरी । - मुंशी दुर्गासहाय , कहे कलापूर्णसूरि-२00000000000000000000 २२५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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