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समय दो-तीन घंटे तक निद्राधीन देखकर सोचा, "कदापि नहीं और आज यह प्रमाद क्यों ?"
उसे जगा कर पूछा, "आज वहोरने के लिए कहां गये थे ?" "नित्य जाता हूं वही गया था ।" "क्या कोई नवीन वस्तु लाये थे ?" "आज मैं सुगन्धित चावल लाया था ।"
सायंकालीन प्रतिक्रमण में श्रावक आये तब पूछा, "आपके घर पर सुगंधित चावल कहां से आये ?"
गुरु महाराज के समक्ष असत्य कैसे बोला जाये ?
श्रावक ने कहा, "आज जिनालय में किसी यात्री ने सुगंधित चावलों से स्वस्तिक किया । उनसे चार-पांच गुने चावल डाल दूंगा । यह सोच कर मैं वे चावल घर ले आया, पकाये और वहोरा दिये ।
गुरु महाराज बोले, "गजब हो गया, ऐसा करना चाहिये ?" गुरु ने शिष्य को प्रायश्चित दिया और उसे वमन कराया ।
हमारे जीवन में क्या ऐसा होता है ? उन्माद उत्पन्न होता है, कुविचार आते हैं वे कहां से आते हैं ? जितने दोष लगाते हैं, उनमें से आते हैं ।
* अष्ट प्रवचन माता की ढाले कितनी अच्छी हैं ? उन पर मैंने आधोई में वाचना दी थी।
समिति-गुप्ति के साथ जो राग-द्वेष नहीं करता, उसकी विशुद्धि होती है। पूर्णतः विशुद्धि नही फिर भी विशुद्धि के संस्कार पड़ेंगे तो आगामी जन्म में भी ये संस्कार साथ आयेंगे ।
* गुणों का संक्रमण होता है । अपने आचार्य देव पू. कनकसूरिजी महाराज विशुद्ध चारित्र पालते थे, अतः ऐसा विशुद्ध चारित्र पालने की हमे इच्छा होती है। वे स्वयं तो बोलने में जयणा रखते ही, परन्तु सामने वाला व्यक्ति बातें करें तो वह भी जयणा रखता था । ऐसे महात्मा अपने जीवन के द्वारा बताते थे कि चारित्र क्या है ?
* प्रवचन-माता के सम्बन्ध में सुनने को मिले, पढने को मिले तब पता लगे कि प्रवचन-माता का इतना मूल्य हैं ! (२२४ 60wooooooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - २)