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भुजपुर - कच्छ, वि.सं. २०४२
३०-४-२०००, रविवार वै. कृष्णा-११ : पालीताणा
* सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र तीनों मिल कर मोक्ष मार्ग बनता है। इन तीनों की आराधना करने पर मोक्ष प्राप्त होता है । तो क्या मेरे जीवन में सम्यग् दर्शन है ? सम्यग् ज्ञान है ? तो देखो । सम्यग् दर्शन नहीं आये तब तक ज्ञान भी अज्ञान है, क्योंकि सम्यग् दर्शन रहित ज्ञान आत्मा के दोषों का निवारण नहीं करता । आत्मा को जो प्रेरणा प्रदान करे वह ज्ञान है ।
- आज तक हमारा अनन्त काल निष्फल गया, क्योंकि यह मार्ग मिला नहीं ।
* ज्ञान विनय से ही आता है । विनय सीख लिया तो ज्ञान आयेगा ही । जितने अंशों में विनय का अभाव होगा, उतना ज्ञान का अभाव होगा ।
गौतम स्वामी में पूर्ण विनय था । उनके शिष्य भी कितने विनयी थे ? गुरु अपनी योग्यतानुसार ही मिलते हैं। योग्यता होगी तो इस जन्म में भी सद्गुरु मिल जायेंगे । सद्गुरु मिल जाये पर मैं उन्हें नहीं मानूं तो ? इसीलिए हम 'जयवीयराय' में बोलते हैं कि सद्गुरु का योग मिले और उनके वचनों को मैं 'तहति' कह
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