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कर सम्मान दूं । जो गुरु के वचनों को 'तहत्ति' करता है, वह भगवान के वचनों को भी 'तहत्ति' करता है, क्योंकि गुरु एवं भगवान भिन्न नहीं हैं ।
___ चारित्र में स्थिरता गुरु की कृपा से आती है । आगमों में लिखा है कि आप यदि आत्म-कल्याण चाहते हो तो किसी भी दिन गुरुकुल को मत छोड़ना । उन्हें धन्य है जो आजीवन गुरुकुल में रहकर गुरु के वचनों का पालन करते हैं । जो गुरु मिले हों, उनके वचनों का यदि पालन करें तो अवश्य कल्याण होता है ।
पहले गुरु मिले होंगे, परन्तु उनके वचनों का पालन नहीं किया । इसीलिए कल्याण नहीं हुआ । भोमिया मार्ग बताता है और मंजिल तक पहुंचाता है, उसी प्रकार से भव-अटवी में परिभ्रमण करते जीव को गुरु मुक्ति तक पहुंचाते हैं, परन्तु गुरु की बात माननी पड़ती है । भोमिया उधर चलने का कहे और आप कहो कि मैं तो इधर ही चलूंगा, तो क्या होगा ? भटकना पड़ेगा न ? पहुंचने में विलम्ब होगा न ? भोमिया समझाता है - महाराज साहेब ! इस मार्ग से चलने जैसा नहीं है, कांटे आयेंगे; परन्तु हम इन्कार करते हैं। उस प्रकार क्या हम गुरु के कथनानुसार करते हैं ?
धन्य हैं वे जो गुरु के दिल में शिष्य के रूप में बस जायें । इतने विनय आदि गुण प्राप्त किये हों उसे गुरु भी याद करते हैं कि वह भाग्यशाली कहां गया ?
* इस पयन्ना में सम्पूर्ण नींव इतनी सुदृढ बताई है कि ज्ञान-दर्शन-चारित्र की ओर हमारी गति हो । गन्ने के किस भाग में मधुरता नहीं है ? गुड़ के कौन से कणों में मधुरता नहीं है ? इन जिन-वचनों का कौन सा भाग मधुर एवं गुणकारी नहीं है ? जिसके प्रत्येक वाक्य में मधुरता है, यह जानने के बाद भी क्या आप उसका स्वाध्याय किये बिना रहेंगे ?
मधुरता में शर्करा के समान कोई पदार्थ नहीं है, उस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में जिन-वचनों के समान मधुर कुछ भी नहीं है । देरी से या शीघ्रता से अटवी पार करनी हो तो भोमिया (पथदर्शक) के कथनानुसार ही चलना पड़ता है । उस प्रकार यह (कहे कलापूर्णसूरि - २0055000000000000 २२१)