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________________ समाचार पत्रो में फोटो दे या चाहे जो करे, लेकिन हमारी वास्तविकता में उससे कितना फर्क पड़ेगा ? * जीवन यापन करने के लिए आवश्यक क्या है ? भोजन, आवास, वस्त्र, पानी और हवा; ये सभी पदार्थ क्रमशः अधिकाधिक आवश्यक हैं । इनके बिना जीवन नहीं चलेगा । धर्म-साधना में भी छः आवश्यक (आवश्यक याने अत्यन्त जरुरी) है - सामायिक, चउविसत्थो, वांदणे, प्रतिक्रमण, काउस्सग्ग एवं पच्चक्खाण । वस्त्र एवं आवास के बिना फिर भी चल सकता है, परन्तु क्या वायु के बिना चलेगा ? वायु के स्थान पर यहां सामायिक है । सामायिक (समता) के बिना साधना में प्राण नहीं आता । * राजुल नारी रे सारी मति धरी, अवलंब्या अरिहंतोजी; उत्तम संगे रे उत्तमता वधे, सधे आनन्द अनंतोजी । राजुल ने वीतरागी का संग किया, अरिहंत का आलम्बन किया । परिणाम क्या हुआ ? उत्तम पद प्राप्त हुआ । उत्तम के आलम्बन से उत्तमता बढ़ेगी ही । प्रभु ऐसे महिमामय हैं । उनकी महिमा समझने के लिए शक्रस्तव का पाठ करने योग्य है । वे विशेषण केवल प्रभु की महिमा के ही द्योतक नहीं है, परन्तु प्रभु के उपकार को भी बताने वाले हैं । प्रभु की यह उपकार-सम्पदा है । प्रभु का ऐसा स्वरूप जानने से हमें वह अनन्य शरण प्रतीत होते है, प्रभु के चारित्र के प्रति अनन्य प्रेम जागृत होता है, प्रभु के उपकार के प्रति हृदय झुक जाता है । "प्रभु-उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न समाय रे ।" परन्तु क्या ऐसे उपकारी प्रभु याद आते हैं ? शरीर याद आता है, परन्तु क्या प्रभु याद आते हैं ? शरीर के लिए कितने भी दोष सहन करने के लिए तत्पर हैं, परन्तु प्रभु के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं है । * प्रभु तो हमारा उद्धार करने के लिए निरन्तर तत्पर हैं । वे करुणा की वृष्टि कर रहे हैं । सूर्य की तरह उनकी करुणा का प्रकाश सर्वत्र फैल रहा है। आवश्यकता है केवल उनके सन्मुख होने की । (२१६ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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