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विहार में धीमी गति से चलें तो ठण्ड़े प्रहर में नहीं पहुंच सकते । मोक्ष की साधना में यदि विलम्ब करेंगे तो मोक्ष में शीघ्र नहीं पहुंच पायेंगे ।
प्रश्न आपके समान वेग हम में क्यों नहीं आता ? उत्तर किसका वेग अधिक है ? इसका निर्णय भगवान के अतिरिक्त कौन करेगा ?
हम आचार्य हैं, आप श्रावक हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि हम ही मोक्ष में शीघ्र पहुंचेंगे । पू. हेमचन्द्रसूरि म.सा. आचार्य थे, फिर भी कुमारपाल उनसे पहले मोक्ष में जायेंगे ।
धर्मनाथ भगवान की सभा में प्रश्न पूछा गया कि सबसे पहले कौन मोक्ष में जायेगा ? भगवान ने कहा 'चूहा ।' कितने ही केवली, आचार्य, उपाध्याय आदि बैठे होते हुए भी पहले मोक्षगामी का पद चूहे ने प्राप्त कर लिया ।
कौन प्रथम मोक्ष में जायेगा ? किसकी साधना वेगवती है ? इसका निर्णय प्रभु के केवलज्ञान में हो वही सच्चा ।
मोक्ष-मार्ग में वेग बढ़ाने की बात जाने दें । सर्व प्रथम हमें यह सोचना है कि मोक्ष मार्ग में प्रवेश तो हो गया है न ? यदि प्रवेश ही नहीं हुआ हो तो वेग कैसे आयेगा ? मिथ्या मार्ग पर हों और वेग बढ़ जाये तो भी क्या लाभ ?
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मार्ग पर चल रहे हों और पुनः पुनः वही मील का पत्थर आता हो तो ? तो समझना चाहिये कि हम गलत हैं या तो मार्ग में कोई गडबड़ हैं ! उस प्रकार यहां भी समझें ।
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* प्रभु का स्वभाव है सेवक के कष्ट निवारण करना । चन्दन शीतलता प्रदान करता है, अग्नि उष्णता प्रदान करती है । पुद्गलों में भी ऐसी शक्ति हो तो भगवान में शक्ति न हो यह बने भी कैसे ?
"चंदन शीतलता उपजावे, अग्नि ते शीत मिटावे; सेवक ना तिम दुःख गमावे, प्रभु-गुण प्रेम-स्वभावे । " * पूर्ण गुणों से युक्त भगवान भी यदि अभिमान नहीं करते हों तो हमारे जैसे अपूर्ण व्यक्तियों को तो अभिमान करने का अधिकार ही कहां है ? चाहे हमें कोई कितने ही विशेषणों से युक्त करे, ( कहे कलापूर्णसूरि २
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