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पदवी प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३
२९-४-२०००, शनिवार वै. कृष्णा-१० : पालीताणा
* प्रभु-वचन अमृत है, जो हमें शाश्वत-पद प्रदान करता है। प्रभु के नाम, दर्शन, आगम, शुद्धात्म द्रव्य-चिन्तन, केवलज्ञान, ध्यान आदि से हमारे भीतर पवित्रता का संचार होता है।
पानी की तरह प्रभु जगत् को निर्मल बनाने का कार्य करते रहते है। प्रभु पवित्र होने के कारण उनका ध्यान हमारे भीतर पवित्रता लाता है । चन्दन शीतल है, उसका विलेपन हममें शीतलता लाता है । पानी ठण्डा है । उसका पान हमारे भीतर ठण्डक लाता है। पुद्गल का भी इतना प्रभाव होता है तो भगवान का प्रभाव क्यों नहीं होगा ?
* पुद्गल के परमाणु (कर्म के अणु आदि) में भी कितनी एकता है ? वे कैसा कैसा निर्माण करते हैं ? शरीर, स्वर, पुन्यपाप का समय आदि कर्म के अणु में फिट हो जाते हैं । यह कैसा आश्चर्य है ? _ 'कर्म का, पुद्गल का यह व्यवस्थित आयोजन है, जीव को संसार में जकड़ रखने का ! उक्त आयोजन को उल्टा गिराने का कार्य इस साधना के द्वारा करना है । [२१४ 50000mmmmmmmmmmmm कहे कलापूर्णसूरि - २)