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इस जीवन में हमें साधु-जीवन तो प्राप्त हो गया है, परन्तु क्या बोधि प्राप्त हुई है ? क्या देहाध्यास टला है ? ये प्रश्न आप अपनी आत्मा को पूछ लें । स्वयं को आप ही सुधार सकेंगे, अन्य किसी की भी शक्ति नहीं है जो आपको स्वयं को सुधार सके ।
___ इस समय हम देह को आत्मा के रूप में देख रहे हैं, जो मिथ्यात्व को सूचित करता है। जब तक भीतर मिथ्यात्व का एक कण भी पड़ा हो, तब तक देह में आत्म-बुद्धि मिटती नहीं है। जब सात प्रकृति निर्बल हो जाती है, सम्यक्त्व गुण प्रकट होता है, तब देहाध्यास टलता है।
आप हताश न हों, यह वस्तु प्राप्त नहीं हुई हो तो प्राप्त करने के लिए उद्यत बनें । यह सब मैं आपको हताश करने के लिए नहीं कहता । आप उत्साही बन कर साधना के मार्ग पर अग्रसर हो, उसके लिए कहता हूं ।
आधुनिक युग की सात गैर-समझ १. टेकनोलोजी से प्रकृति को झुकाया जा सकेगा। २. मनुष्य को पशु ही गिनो, ताकि उसकी भौतिक आनन्द की ___अमर्यादित झंखना सन्तुष्ट करने में कोई बाधा उत्पन्न न हो । ३. मनुष्य पशु है अतः यंत्र है । (अलबत्त जीवित यंत्र) ४. मनुष्य में कामवृत्ति ही प्रमुख है, अतः उसे सन्तुष्ट करना ही
मुख्य कार्य है - फ्रोइड़ ५. प्रकृति को दास बनाकर उसका चाहे जितना उपभोग किया जा
सकता है । ६. अब मनुष्य टेकनोलोजी की आड-पैदाश है । अत: उसमें फिर ___ तत्त्व-ज्ञान कैसा ? ७. भगवान मर चुका है, जी सको उस तरह जीओ ।
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