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जाये तो वे क्या करेंगे ? वे आपको मार्ग आदि में कही लूट ही लेंगे । चारित्र रूपी चिन्तामणि तुल्य मूल्यवान वस्तु प्राप्त होने पर मोहराजा नामक गुण्डा आपको क्या छोडेगा ? आपको लूटने के लिए वह अपने साथियों को भेजेगा ही ! आपको उन गुण्डों से बचना है ।
ये गुण्डे बाहर से नहीं आते, भीतर से ही आते हैं । ऐसे अवसर पर आप पूर्णतः जागृत रहें । आप अपने शुद्ध स्वरूप को याद करें । राग आदि भाव विभाव-दशा है, स्वभाव-दशा नहीं है, यह कदापि न भूलें ।
रागादि के तूफान के समय देह की शक्ति काम में नही आती, आत्म-शक्ति काम में आती है। संभव है कि आप देह से दुर्बल है, परन्तु उससे क्या हुआ ? एक कहावत है -
"जाडा जोईने डरQ नहीं, दुबला जोईने सामे थर्बु नहीं ।"
अतः देह मोटी हो या दुर्बल हो, उसकी अधिक चिन्ता न करें। गोलियाँ खाकर वजन मत बढ़ाना । भीतर आत्म-शक्ति चाहिये, धृति चाहिये । जिसमें धृति हो, वही मोह के तूफान से बच सकता है । धृति आत्म-शक्ति है ।
* हम इस समय लालच में कहते हैं - 'संयम अत्यन्त सरल है । आ जाओ, कोई चिन्ता नहीं है।' यह गलत है, उसे समझाओ कि संयम अत्यन्त कष्टमय है, लोहे के चने चबाने जैसा कठिन है । साहस हो तो ही आना । हमें यही समझाया गया था ।
'संयम सरल है' यह कह कर यदि आप किसी को दीक्षित करेंगे तो वह यहां थोडी ही प्रतिकूलता में हताश हो जायेगा । कच्चे व्यक्तियों का यहां काम नहीं है।
संयम तो योग्य व्यक्तियों को ही प्रदान किया जाता है । योग्य व्यक्तियों को संयम प्रदान करने से लाभ है, उस प्रकार अयोग्य व्यक्तिओं को संयम अंगीकार कराने से हानि भी उतनी ही है, यह न भूलें ।
* हम 'सात लाख' नहीं बोलते अतः हमने यह मान लिया - 'हम तो अठारहों पापों से मुक्त हो गये, हमें आवश्यकता नहीं है।' कहे कलापूर्णसूरि - २00ooooooooooooooooom १८९)