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है, ज्ञान आदि की वृद्धि के लिए है। अनुकूलता की ही आवश्यकता होती तो घर में इससे अधिक अनुकूलता प्राप्त होती, परन्तु हमने तो जान-बूझ कर कष्ट उत्पन्न किया है । ज्ञान आदि को पुष्ट एवं निर्मल बनाने का संकल्प किया है । वह संकल्प भूल तो नहीं गये न ?
बस में खड़े व्यापार का टेन्शन लेकर घूमने वाले गृहस्थ दुःख में होते हुए भी स्वयं को दुःखी नहीं मानते । सामने लाभ दिखाई देता है न ? उस प्रकार ज्ञानादि के लिए हम कुछ कष्ट नहीं उठाये ?
* जिस चारित्र को अंगीकार करने के लिए चक्रवर्ती भी अपनी छ: खण्ड की ऋद्धि तनके की तरह फैंक दें, वह चारित्र हमें प्राप्त हुआ है । उसकी खुमारी कैसी होनी चाहिये ? चारित्र ऐसा मूल्यवान है । क्या आपको यह लगता है कि तीन लोगों के स्वामी भगवान ने यह चारित्र मुझे दिया है ?
इन्द्र सहित सभी देव चारित्रधारी को वन्दन करते हैं । उस चारित्र का क्या वर्णन करें ? विरतिधर को प्रणाम करने के पश्चात् ही इन्द्र अपनी सभा प्रारम्भ करता है ।
भव-भ्रमण के चक्र को चीर देने वाले चारित्र को पाकर क्या हम प्रमाद में पड़े रहेंगे ? गृहस्थों को यदि पैसे मिलते हों तो कष्ट कष्टों के रूप में नहीं लगते, तो कर्म-क्षय-कारक इस चारित्रअनुष्ठान में क्या हमें कष्ट लगेंगे ?
इस विश्व में चारित्र तक पहुंचनेवाले कितने हैं ? सबसे कम लोग हैं । उनमें भी कुछ आर्य हैं, उनमें भी कुछ जैन हैं, उनमें भी थोड़े साधु हैं और उनमें से भी थोडे तात्त्विक साधु हैं ।
___"थोडा आर्य अनार्य जनमां, जैन आर्यमां थोडा; तेमां पण परिणत जन थोडा, श्रमण अल्प बहु मुंडा..."
- उपा. यशोविजयजी महाराज ऐसे दुर्लभ साधुत्व के लिए सावधानी कितनी ?
देव भी जिस सुख को प्राप्त न कर सकें, ऐसा सुख साधु इसी भव में प्राप्त कर सकता है । क्या यह कम बात है ?
परन्तु क्या आपको एक बात का पता है ? आपके पास यदि लाखों - करोड़ों रुपये आ गये हों और गुण्डों को पता लग (१८८Goowwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २)