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अट्ठम, उपवास आदि करके देखें । साधना में आनन्द बढता हुआ प्रतीत होगा ।
आदीश्वर दादा की यात्रा खा-पीकर करोगे कि खाली पेट करोगे ? एक बार खा-पीकर यात्रा करो तो पता लग जायेगा । जिस दिन खाना-पीना नहीं हो उस दिन स्वाभाविक रीति से ही आत्म-शक्ति बढ़ जाती हैं ।
इसीलिए उपवास घर का घर,
आयंबिल मित्र का घर,
विगई शत्रु का घर गिना गया है ।
सेना के जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि शत्रु पर आक्रमण कैसे किया जाये ? किस प्रकार आक्रमण नाकाम किया जाये ? उस प्रकार यहां भी बाह्य अभ्यंतर तप के द्वारा कर्मों से संघर्ष करने का प्रशिक्षण दिया जाता है ।
यदि शीघ्रातिशीघ्र मोक्ष में जाना हो तो यह प्रशिक्षण लेना ही पड़ेगा ।
यदि संभव हो तो तीन भवों में ही मोक्ष जायें । मध्यम प्रकार से पांच भवों में मोक्ष जायें । यह भी संभव न हो तो आठ भवों में मोक्ष जायें ।
परन्तु आठ से अधिक भव मत करना । बहुत हो गया । संसार में अत्यन्त परिभ्रमण किया । शास्त्रकार यहां फरमाते हैं कि इस प्रकार आराधना करने वाला तीन भवों में ही मोक्ष जायेगा । (गाथा ९८ )
ज्ञान की बात पूर्ण हुई । अब शास्त्रकार चारित्र की बात कहते
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चारित्र की आराधना सुख-पूर्वक कर सकें इसीलिए श्री संघ हमें इतनी सुविधा कर देता है । इतने बड़े होल आदि में रहने का किराया कितना होता है ? पूछ लें ।
चारित्र गुण प्राप्त करना हो तो सर्व प्रथम हृदयपूर्वक चारित्र गुण की प्रशंसा होनी चाहिये ।
धन्य है चारित्र ! धन्य है चारित्र का पालन करने वाले ! इस प्रकार हृदय में शुभ भावों की लहरे उठनी चाहिये ।
१८२ कळल
कहे कलापूर्णसूरि