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उपयोग मिलाना है । उपयोग-रहित कोई भी क्रिया द्रव्य क्रिया ही रहती है।
क्रिया का फल दृष्टिगोचर नहीं होता क्योंकि भाव-क्रिया का अभाव है । भाव-क्रिया उपयोग के बिना मिलती नहीं है। यह मुख्य उपयोग ही हमारा अनुपस्थित रहता है ।
कालिक, उत्कालिक आदि समस्त सूत्रों में आवश्यक सूत्र मुख्य हैं । उस पर अनुशीलन करें तो ?
सभी सूत्रों का अनुशीलन करना है ।
पक्खी सूत्र में क्या लिखा है ? __ आगमों के नामोल्लेख के साथ हम बोलते हैं - (अंतोपक्खस्स) १५ दिनों के भीतर (जं न पढिअं, न परिअट्टिअं, न पुच्छिअं)
पाठ, पुनरावर्तन, पृच्छा, अनुप्रेक्षा, अनुपालन इन समस्त सूत्रों का करना है । हम करते हैं क्या ?
* पं. वज्रसेनविजयजी नित्य पाठ लेने आते हैं । उनके बालमुनि जिनभद्रविजयजी ने आज पूछा, "नाम लेते ही भगवान सामने कैसे आ सकते हैं ?"
मैंने कहा, 'अमृती (मिठाई का नाम है) का नाम लेते ही वह आपके समक्ष चित्र रूप में आ जाती है न ?
__उसी प्रकार से भक्त भी भगवान के नाम लेते ही भगवान को सामने ही देखता है ।
* मन-वचन-काया को ऐसा शिक्षण दो, ऐसी टेव डलवाओ कि वह भगवन्मय बन जाये । जैसी टेव डलवायें वैसी पड़ेगी । जब बुरी टेव पड़ सकती हो तो अच्छी टेव क्यों न पड़े ?
मन-वचन-काया आखिर नौकर हैं । हम सेठ हैं । हम जैसा चाहे वैसा प्रशिक्षण उन्हें दे सकते हैं, परन्तु हम अपना स्वामित्व भूल गये हैं । इसीलिए हमने दिवाला निकाला है । जहां नौकर सेठ बन जाये वहां दिवाला ही निकलेगा न ?
मन-वचन-काया के योग भगवान के अधीन रखते हैं या मोह के अधीन रखते हैं ?
यह वेष लिया है वह मोह के चंगुल में से छूटने के लिए (कहे कलापूर्णसूरि -
२ wooooomnommmmm १७५)