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________________ तो हाथ में है । प्रयत्न करते रहें । अपने आप ज्ञान बढ़ेगा । कदाचित् न बढ़े तो भी क्या ? आपका प्रयत्न तो निरर्थक नहीं है । इस ग्रन्थकार का कथन हैं कि कदाचित् आप पूरे दिन में एक गाथा, अरे आधी गाथा भी कर सकते हो तो भी प्रयत्न करना बंध मत करना । * आप ज्ञान में पुरुषार्थ करते है, स्वाध्याय करते रहते हो, तब प्रति पल ढ़ेर सारे कर्मो का क्षय करते रहते हो, यह न भूलें । (गाथा ९१) बहु कोडी वरसे खपे, कर्म अज्ञाने जेह; ज्ञानी श्वासोच्छ्वासमां, करे कर्मनो छेह.. ज्ञान की यह महिमा जानने के बाद आप ज्ञानी बनना चाहेंगे या अज्ञानी ? आप पसन्द कर लें । भ कार्य सिद्धि हेतु सात सोपान १. क्या चाहिये ? कैसा बनना है ? स्पष्ट करें । २. ध्येय को बार-बार न बदलो । ३. संकल्प को श्रद्धा के जल से सिंचन करते रहें, परमात्मा पर परम श्रद्धा रखें । ४. तदनुसार मानस चित्र खडा करें । ५. मानस चित्र में मन स्थिर करें । ६. मानस चित्र में जो आप चाहते हैं, वह वर्तमान काल में बन रहा है उस प्रकार देखें । ७. वैसा ही बना है, उस प्रकार जीवन जिए । कहे कलापूर्णसूरि २ क WWW १७३
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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