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संस्कृत का अध्ययन करने वालों को पूछो - स्वाध्याय अब ताक पर तो नहीं रख दिया न ?
__ यदि अध्ययन किया हुआ याद हो तो अभिमान न करें । ज्ञान अभिमान करने के लिए नहीं है, अभिमान नष्ट करने के लिए है । यदि अभिमान करने गये तो जो है वह भी चला जायेगा । जिस किसी वस्तु का अभिमान हुआ, तो वह वस्तु हमारे पास से चली जायेगी । प्रकृति का यह सनातन नियम है ।
* मद्रास (चैन्नई) में तो ऐसी स्थिति आ गई थी कि लगभग अन्त समय निकट आ गया ! मुहपत्ति के बोल भी भूल गया । उस समय ऐसी आशा कैसे रखी जा सकें कि बच जाऊंगा और गुजरात में आकर इस प्रकार वाचना भी दूंगा । परन्तु उस समय भगवान ने मुझे बचाया । दूसरा कोई क्या कर सकता हैं ? भगवान के बिना किसका सहारा ? मातापिता आदि सब भगवान ही हैं, यह मानें । इसीलिए सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी भगवान के साथ माता-पिता आदि का सम्बन्ध जोड़ने का कहते हैं । उस समय मेरा ही लिखा हुआ (ज्ञानसार आदि) मुझे ही काम लगता ।
* स्वदर्शन में निष्णात बन कर श्रद्धालु बनने के बाद ही पर-दर्शन में निष्णात बनने का प्रयत्न करना या दूसरा पढ़ना । उसके बिना टेढ़ा-मेढ़ा पढ़ने गये तो मूल मार्ग से भ्रष्ट हो जाओगे ।
* हमारा मोक्ष रुका हुआ है, परन्तु भरतक्षेत्र में से मोक्ष रुका हुआ है, यह न मानें । महाविदेह में से अपहृत किसी मुनि का यहां से अब भी मोक्ष हो सकता है, ऐसा सिद्धप्राभृत में उल्लेख है।
मोक्ष के लिए मनुष्य-लोक चाहिये । मनुष्य-लोक से बाहर मोक्ष में नहीं जा सकते ।
* तप, क्रिया आदि की शक्ति होते हुए भी उसे छिपाना अर्थात् अपने ही हाथों अपनी मोक्ष गति धीमी करनी ।
* कई वस्तु बार-बार आती रहें तो थकना नहीं, वे भावित बनाने के लिए आती हैं, यह मानें । 'नवकार' कितनी बार गिनना चाहिये ? 'करेमि भंते' कितनी बार बोलना चाहिये ? कम से कम नौ बार । ये सूत्र भावित बनाने हैं । कहे कलापूर्णसूरि -
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