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श्रमण संमेलन, अनेक पू. आचार्यों के बीच पूज्यश्री,
अमदावाद, वि.सं. २०४४
२२-४-२०००, शनिवार वै. कृष्णा-प्रथम-४ : पालीताणा
भगवान के मार्ग पर चलने के लिए जीवन में तीन बातें लानी आवश्यक हैं - श्रद्धा, जानकारी एवं उद्यम । इन्हें ही हम जैन परिभाषा में रत्नत्रयी कहते हैं । रत्नत्रयी ही मोक्ष-मार्ग है।
भगवान या भगवान का मार्ग अभी तक हमें प्राप्त नहीं हुआ। इसका कारण मुख्यतः श्रद्धा का अभाव है। प्रभु में प्रभुता नहीं दिखाई दी । मार्ग में मार्ग नहीं दिखाई दिया । मोक्ष कैसे मिले?
ज्ञान आदि हमारे भाव-प्राण हैं । यदि इनकी उपेक्षा करें तो कैसे चलेगा ? भाव-प्राण के कारण ही द्रव्यप्राण प्राप्त हुए हैं। भाव-प्राण रूपी आत्मा चली जाये तो क्या द्रव्य-प्राण का कोई मूल्य रहेगा ?
प्रभु में प्रभुता दृष्टिगोचर न हो, श्रद्धा नहीं जमे, तब तक मोक्ष-मार्ग कदापि खुलने वाला नहीं है । 'तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइअं ।' इतना बोलने मात्र से श्रद्धा नहीं आती । श्रद्धा कदापि शाब्दिक नहीं होती, आन्तरिक होती है। श्रद्धा का जन्म हृदय की भूमि पर होता है । श्रद्धा के द्वारा हम प्रभु में विद्यमान प्रभुता जान सकते हैं, तारकता जान सकते हैं । प्रभु में प्रभुता दृष्टिगोचर होना ही सम्यग्दर्शन हैं ।
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