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___ इसके कारण उनकी गर्दन भी झुक गई थी । वे ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ों का उत्कृष्ट पालन करते थे ।
कच्छ छोड़कर बाहर जाने की उनकी तनिक भी इच्छा नहीं थी, फिर भी लाभ-हानि सोचकर उन्होंने वि. संवत् २०२६ में नवसारी में चातुर्मास किया ।
पाट के उपर से गिरने पर फ्रैकचर हुआ, जिसके कारण अन्तिम दो वर्ष पाट पर ही रहना पड़ा । हमने ओपरेशन कराने का उन्हें निषेध किया, फिर भी नानालाल घेलाभाई के अत्यन्त आग्रह से ओपरेशन करा लिया ।
वि. संवत् २०२९ में मैं दीक्षा प्रदान करने हेतु राधनपुर गया था । लौटते समय मार्ग में चैत्र की ओली के लिए अनेक विनती हुई, परन्तु हमने वह स्वीकार नहीं की। ओली से पूर्व हम - आधोई आ पहुंचे । चैत्र शुक्ला चतुर्दशी को उनका स्वर्गवास हो गया ।
वे तो चले गये, परन्तु लाकड़िया में से अब कौन तैयार होगा ? उनके भतीजे कांतिलाल दीक्षित होने जैसे थे । आज वे पण्डित रूप में कोलकाता में है । ब्रह्मचारी हैं, परन्तु दीक्षा ग्रहण नहीं कर सके ।
ओली कराने वाले कुबड़िया परिवार में से दीक्षा ग्रहण करने के लिए क्या कोई तैयार होगा ? एक बहन एवं एक भानजा तो दीक्षा अंगीकार कर चुके हैं। अब उनके मार्ग में क्या दूसरा कोई आयेगा ?
स्व. पूज्यश्री का भक्तियोग भी प्रबल था । अष्टमी - चतुर्दशी के दिन वे नये-नये जिनालयों में खास दर्शन करने के लिए जाते थे।
यहां पालीताणा में अनेक जिनालय है । इस नियम का पालन करें । एक चैत्यवन्दन संघ की ओर से भी करना चाहिये ।।
'खामणों' में यह बात आती है न ? यह बात आज मुझे खास तौर से दादा के दरबार में आज याद आई । यद्यपि मैं चतुर्विध संघ की ओर से सबको याद करके दर्शन करता हूं। आपकी ओर से मैं ने दर्शन किये तो अब आप उसकी अनुमोदना करें ।
छोटे मुनि भी दर्शन करके आये हों तो बड़े आचार्य भी
कहे कलापूर्णसूरि - २wooooooooooooooooom १४५)