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________________ प्रत्येक भगवान के पास सौ सौ करोड साधु विद्यमान हैं । बीस अरब साधु महाविदेह में विद्यमान हैं । * संयमी याद आने पर वर्तमान में हो चुके पूज्य देवेन्द्रसूरिजी याद आते हैं। वे हमारे निकट के उपकारी हैं। समीपस्थ उपकारी अधिक याद आते हैं । ओली करानेवाले धीरुभाई - परिवार जिस गांव के हैं, उसी लाकड़िया गांव के वे निवासी थे । माता मूलीबेन और पिता लीलाधरभाई के इस सन्तान का नाम गोपालभाई था । लाकड़िया में अध्ययन करने के बाद वे धार्मिक अध्ययन के लिए मेहसाना की पाठशाला में गये । असंख्य देव जिसे प्राप्त करने के लिए तरस रहे हैं, वह मानवभव पाकर भी यदि हमारा चारित्र अंगीकार करने का मन न हो तो समझें कि पुन्य का अत्यन्त अभाव है। गोपालभाई को यह बात पूज्य जीतविजयजी महाराज के सम्पर्क से अच्छी तरह समझ में आई हुई थी । * मेहसाना में अध्ययन करने के बाद दीक्षा ग्रहण करने की भावना से उन्होंने सामखीयारी, मनफरा, आधोई आदि स्थानों पर धार्मिक शिक्षक के रूप में कार्य करके ओसवाल समाज को धार्मिक शिक्षा प्रदान करने का भगीरथ कार्य किया । * माता के इकलौते पुत्र होने के कारण दीक्षा ग्रहण करने के लिए इन्हें जल्दी आज्ञा नहीं मिली । * पुत्र के ऊपर से ममत्व हटाकर शासन में ममत्व लगाने वाली माताएं धन्य हैं । "मेरे परिवार में से एक रत्न तो जैन-शासन को मिलना ही चाहिये ।" इस प्रकार की भावना वाली माताओं के कारण इस वर्ष हमें दो साधु मिले । * हमने लाकड़िया में दो चातुर्मास (वर्षावास) किये है - वि. संवत् २०१२ में और वि. संवत् २०२८ में । प्रथम चातुर्मास तो (पू.पं. मुक्तिविजयजी म. के पास) विशेषतः अध्ययन की इच्छा से ही किया था । * गोपालभाई की सगाई हो चुकी थी, परन्तु बाद में वाग्दत्ता (कहे कलापूर्णसूरि - २ ooooooooooooooo १४३)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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