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पूज्यश्री के चरण
१४-४-२०००, शुक्रवार चैत्र शुक्ला-११ : पालीताणा
* शाश्वतगिरि की छाया में शाश्वत ओली का प्रसंग ! सचमुच उत्तम पदार्थों का अद्भुत समन्वय हुआ है ।
यदि नवपद में हमारा ध्यान लग जाये तो काम हो जाये । दूसरी आराधना में श्रावक हकदार न भी हों, लेकिन नवपद की आराधना का अधिकारी चतुर्विध संघ है । नवपद के आलम्बन से आत्मा के शुद्ध स्वरूप तक पहुंचना है।
* दिन में चार बार सज्झाय, सात बार चैत्यवन्दन प्रत्येक साधु-साध्वीजी के लिए अनिवार्य हैं । यही ध्यान की पूर्वभूमिका
है ।
* स्वयं की ही अनुकूलता का विचार आर्तध्यान है । उस निमित्त दूसरे को कष्ट पहुंचाने का विचार रौद्र ध्यान है ।
जिस व्यक्ति ने श्रावक-जीवन में जयणापूर्वक पालन नहीं किया, वह यहां आकर जयणा का पालन करे, यह न मानें । केवल बुद्धि नहीं देखें । मुमुक्षु में आराधक भाव, दया भाव कितना है, यह देखें ।
* कोई ग्राहक आपकी दुकान के माल की प्रशंसा ही (१३०0000000000000s कहे कलापूर्णसूरि - २)