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* प्रभु के प्रति प्रेम है कि नहीं ? उसकी निशानी क्या? अन्य-अन्य पदार्थों (शरीर, शिष्य, उपधि, मकान आदि) पर प्रेम अधिक है कि प्रभु के प्रति प्रेम अधिक है ? यह अपने मन को पूछना ।
प्रभु के प्रति जितना प्रेम हो, वैसा प्रेम अन्य किसी पदार्थ पर न हो, यही प्रीति-अनुष्ठान कहलाता है । प्रीति-अनुष्ठान सुद्रढ होने के बाद ही भक्ति, वचन और असंगयोग प्रकट हो सकता है । वचन की आराधना हमारे भीतर (मुझ मे भी) नहीं प्रतीत होती, कारण कि प्रभु-प्रेम की हम में कमी है ।
प्रभु-प्रेम के लिए प्रयत्न करने का उपाय यह है कि अन्यअन्य वस्तुओं पर से प्रेम घटाते जाना ।
* आत्मा कौन है ? हमारे भीतर विद्यमान ज्ञान, श्रद्धा, क्रिया आदि गुण ही आत्मा है । आत्मा गुणों के द्वारा प्रतीत होती है।
संसार में धर्म एवं धर्म में संसार छास में मक्खन हो तो चिन्ता नहीं, परन्तु मक्खन में छास नहीं चाहिये । कोयलों में हीरा आ जाय तो चिन्ता नहीं, परन्तु हीरे लेते समय कोयला नहीं आना चाहिये ।
धूम्रपान करते-करते प्रभु का स्मरण करने में कोई आपत्ति नहीं, परंतु प्रभु-स्मरण करते-करते सिगरेट नहीं चाहिये ।
विष में मिलावट हो तो आपत्ति नहीं, परन्तु मिठाई में विष की मिलावट नहीं चाहिये ।
पानी पर नाव हो तो आपत्ति नहीं, परन्तु नाव में पानी नहीं चाहिये ।
संसार में प्रभु याद आये तो आपत्ति नहीं, प्रभु-भक्ति में TRam संसार याद नहीं आना चाहिये ।
(१२४ 00mmonwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २