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भगवान में यह योग्यता सहज ही होती है ।
* व्याख्यान में से हम चित्त की निर्मलता के अनुसार ही प्राप्त कर सकते हैं । निर्मलता के अनुसार योग्यता आती है। योग्यता के अनुसार धर्म प्राप्त होता है ।
* नवपद की शाश्वती ओली का आज प्रथम दिन है । गल-घुट्टी से ही हमें ऐसे अनुष्ठानों के प्रति प्रेम होता है ।
जब तक आत्मा नवपदमय न बने तब तक पुनः पुनः यह ओली करनी है। इसीलिए यह ओली प्रत्येक छ: छ: महिने आती रहती हैं और कहती रहती हैं कि मैं आ गई हूं । अभी तक आप नवपदमय नहीं बने हैं ।
* नवपद में मुख्य अरिहंत-पद है। शेष आठों पद अरिहंत के ही आभारी हैं ।
किसी भी यंत्र-मंत्र आदि में अरिहंत ही केन्द्र स्थान पर होते हैं । क्यों होते हैं ? क्योंकि अरिहंत में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य का खजाना है, उस प्रकार उनमें पुन्य का खजाना भी है, जिससे अनेक व्यक्तियों को आकर्षित करके धर्म के रागी बनाते हैं ।
* हमारा भक्ति का रंग कैसा है ? हलदी जैसा है या मजीठ जैसा है ? धूप लगते ही जो उड़ जाये वह हलदरिया रंग होता है। तनिक ही प्रतिकूलता आने पर चला जाये वह हलदरिया धर्म होता है ।
* आप किस भरोसे बैठे हैं ? क्या आप भरत की तरह आरीसा-भुवन (शीशमहल) में बैठे-बैठे या मरुदेवी की तरह हाथी पर बैठे-बैठे केवलज्ञान प्राप्त हो जायेगा, यह मानते हैं ? मुमुक्षुपन में तो फिर भी नियम थे। यहां आने के बाद सभी नियम, क्या ताक पर रख देने हैं ? क्या अब उनकी कोई आवश्यकता नहीं है ? क्या दीक्षित हो जाने पर सब समाप्त हो गया ?
दीक्षित होने के बाद वैराग्य के रंग में वृद्धि हो रही है या कमी हो रही है ?
* अष्ट प्रातिहार्य आदि की समृद्धि साधना का फल है, साधना का कारण है । भगवान की यह ऋद्धि भी ख्याति आदि के लिए नहीं, परन्तु विश्वोपकार के लिए ही होती है । (११२ooooooooooooooo00 कहे कलापूर्णसूरि - २)