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व्यापारी ने कितने रुपये कमाये, यह जानकर वह सन्तोष मानता है कि इतने रुपये कमा लिए, अब इतने ही बाकी हैं । उस प्रकार क्या हमें सन्तोष है कि इतने गुण प्राप्त कर लिए अब इतने बाकी हैं ?
इतने गुण तो प्राप्त कर ही लो, ताकि सन्तोष हो, कि अब तो मोक्ष प्राप्त हो ही जायेगा ।
क्या आपको इतना आत्म-विश्वास है कि आज जो गुण हमारे पास हैं, उनसे मुक्ति प्राप्त हो जायेगी ? सात नय हमारे मील के पत्थर हैं । वे क्रमशः बताने वाले हैं कि, हमारे भीतर कितना सिद्धत्व प्रकट हो चुका है ।
संग्रहनय से हमें पता लगता है कि ' भीतर परम तत्त्व का खजाना छिपा हुआ है । यदि आपको ज्ञात हो जाये कि भूगर्भ में खजाना है तो क्या आप बैठे रहेंगे या खुदाई का कार्य प्रारम्भ करेंगे ?
आजकल वढ़वाण में एक व्यक्ति को स्वप्न में मिले संकेत के अनुसार पता लगा है कि नीचे भूमि में जिनालय है, यह समझकर घर में खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया है ।
स्वप्न तो कदाचित् काल्पनिक भी हो सकता है, मिथ्या भी हो सकता है । हमारे भीतर सिद्धत्व का खजाना पड़ा है, इसमें कोई कल्पना नहीं है, वास्तविकता है ।
* 'करण' में वीर्य-शक्ति की प्रबलता होती है । इतनी वीर्य शक्ति होती है कि क्षण-क्षण में आत्मा कितने ही कर्मों की निर्जरा करती रहती हैं ।
वीर्य, पराक्रम, उत्साह, सामर्थ्य, शक्ति ये सब आत्म- -शक्ति के उल्लास के प्रकार हैं । इन सबसे भिन्न भिन्न प्रकार से कर्म नष्ट होते हैं । इन सबका 'ध्यान- विचार' में वर्णन किया जा चुका है ।
उदाहरणार्थ उत्साह से कर्म नीचे उछलते हैं और बाद में गिरकर झड् जाते हैं । सुथार लकड़ा काटता है, धोबी कपड़े धोता है, सबकी पद्धति भिन्न है, उस प्रकार यहां भी वीर्य, पराक्रम आदि की पद्धति भिन्न-भिन्न है ।
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१८ कहे कलापूर्णसूरि