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________________ RSSIURETITIRIROI प्रतिष्ठा प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५० ९-४-२०००, रविवार चैत्र शुक्ला-५ : पालीताणा * हम मानते हैं कि कर्म पुद्गलों में शक्ति होती है, परन्तु तीर्थ में शक्ति है क्या यह हम मानते हैं ? तीर्थ होता है तब तक तीर्थंकर की शक्ति तीर्थ में कार्य करती है। तीर्थ के द्वारा भगवान महावीर परमात्मा की शक्ति अभी भी साढ़े अठारह हजार वर्षों तक कार्य करेगी । जिस प्रकार कर्म की शक्ति कार्य करती है, उस प्रकार कर्म-मुक्त आत्माओं की शक्ति भी कार्य करती है, यह बात हम अभी तक समझे नहीं हैं । कर्म-ग्रन्थ के द्वारा कर्मों की शक्ति तो समझ में आ गई, परन्तु अभी तक भक्ति-शास्त्र के द्वारा परम आत्मा की शक्ति समझ में नहीं आई। __पंचसूत्र में उल्लेख है - 'होउ मे एसा अणुमोअणा... परम गुण जुत अरिहंताइसामत्थओ' मेरी यह अनुमोदना परम शक्तिशाली अरिहंत आदि के प्रभाव से सफल बने । 'आदि' शब्द से सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु भी लेने हैं । उनकी भूमिका के अनुसार उनकी शक्ति भी हमारे भीतर कार्य करती है - यही मानना रहा । * नवकारसी के समय ही नित्य भूख लगती है, लेकिन (१०६ 600mm onsoon कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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