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* भगवान की भक्ति तो मैं कदापि छोडने वाला नहीं हूं । इस भक्ति को मैं भवान्तर में भी साथ ले जाना चाहता
* शुक्ल ध्यान का पूर्वार्ध केवलज्ञान प्रदान करता है और उत्तरार्ध अयोगी गुणस्थान में ले जाकर मोक्ष प्रदान करता है । केवलज्ञान एवं मोक्ष भी ध्यान के बिना नहीं प्राप्त हो सकते हों तो दूसरे (४-५-६) गुणस्थानक ध्यान के बिना कैसे प्राप्त हो सकते हैं ?
इस समय के अपने गुणस्थानक केवल व्यवहार से है। नाटक में अभिनेता राजा बने या युद्ध में विजयी बने, इससे कोई सच्चे अर्थ में विजेता राजा नहीं बन सकता, इसी प्रकार से केवल वस्त्र पहनने से वास्तविक गुणस्थानक नहीं आ सकता।
* वि. संवत् २०२५ में अहमदाबाद में हमारा चातुर्मास (वर्षावास) था । नायक पू. देवेन्द्रसूरिजी थे, अतः वसति का उत्तरदायित्व नहीं था । पूज्य पं. मुक्तिविजयजी महाराज (बाद में आचार्य) वहां चातुर्मास पर थे । प्रातः प्रवचन देकर, एकासना करके मैं वहां अध्ययन हेतु पहुंच जाता । कई बार तो ४-५ या ५६ घण्टे भी मैं वहीं रह जाता ।
कई बार तो वे स्वयं लेने के लिये सामने आते । इस प्रकार मैं अनेक के पास गया हूं। एकत्रित किया है। उन सभी महात्माओं का उपकार है।
भक्ति नापने के लिए दूध का घनत्व नापने के लिए लेक्टोमीटर, बिजली का दबाव नापने के लिए वोल्टमीटर, हवा का दबाव नापने के लिए बेरोमीटर तथा तापक्रम नापने के लिए थर्मामीटर होता है, उस प्रकार प्रभुभक्ति नापने के लिए चित्त की प्रसन्नता होती है ।
[कहे कलापूर्णसूरि-
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