SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बार भी नहीं बांधते, वे अपुनर्बंधक कहलाते हैं । कितनेक जीव इससे भी आगे बढ़ कर तीन करण करके सम्यग् दर्शन प्राप्त करते हैं । सम्यग् दर्शन प्राप्त होने पर ही सच्चे अर्थ में धर्म का प्रवेश हुआ गिना जाता है । * ध्यान की स्थिति (लगातार ध्यान की धारा) चाहे ४८ मिनिट ही रहती हो, परन्तु शुभ अध्यवसाय तो चौबीस घण्टे रह सकते है । जिसके ऐसे शुभ अध्यवसाय रहते हैं, वे ही सच्चे साधु कहलाते हैं। इसीलिए पंचसूत्र में साधु के लिए "झाणज्झयण - संगया" लिखा है । __ यह कब आता है ? 'पसंतगंभीरासया ।' जब आशय प्रशान्त, गम्भीर बन जाता है तब आता है । इस प्रकार पंचसूत्र में साधु के विशेषण कारण - कार्य भाव से संकलित हैं । * हमें स्वार्थ प्रिय है कि परार्थ अधिक प्रिय है ? भोजन, पानी आदि में अपनी चिन्ता अधिक रहती है कि दूसरों की चिन्ता अधिक रहती है ? साधुओं को तो मात्र परोपकार-रत कहा गया है, जबकि तीर्थंकरो को परोपकार-व्यसनी कहा गया है। इस प्रकार की परार्थ-वृत्ति उत्पन्न हो, आशय प्रशान्त एवं गम्भीर बने, सावद्य-योग से विरति आये, पंचाचार में दृढ़ता उत्पन्न हो, जीवन कमल के समान निर्लिप्त बने, उसके बाद ही विशुद्ध अध्यवसायों की धारा उत्पन्न होती है । * ज्ञान से चारित्र एवं चारित्र से ज्ञान भावित बना हुआ होना चाहिये, स्पर्श किया हुआ होना चाहिये । स्पर्श से तात्पर्य है ज्ञान की अनुभूति होना । ऐसा होने पर ही आत्मिक आनन्द की उत्पत्ति होती है । भगवती में जो बारह माह पर्याय वाले साधुओं का आनन्द अधिक अनुत्तरवासी देवों से भी अधिक होना लिखा है, वे ऐसे आत्मानन्दी साधु ही समझें । ऐसी भूमिका किस प्रकार आती है? स्वभाव में तन्मयता रखने से ऐसी भूमिका आती है । * ज्ञान से ध्यान भिन्न नहीं है, दोनों में अभेद है । ज्ञान ही तीक्ष्ण बन कर ध्यान बन जाता है। ज्यों ज्यों ज्ञान की विशालता होती जायगी, त्यों-त्यों ध्यान की विशालता में वृद्धि होती जायगी । (कहे कलापूर्णसूरि - २0ssonsooooooooooom ९७)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy