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पावापुरी (राज.) प्रतिष्ठ, वि.सं. २०५७
३-४-२०००, सोमवार चैत्र कृष्णा -१४ : रंगपुर
* कितनेक ग्रन्थ विस्तृत होते हैं और कितनेक संक्षिप्त भी होते हैं क्योकि दोनों प्रकार की रुचि वाले जीव होते हैं । विस्तृत रुचि वाले जीवों के लिए विस्तृत एवं संक्षिप्त रुचिवाले जीवों के लिए संक्षिप्त ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होते हैं ।
कभी संक्षिप्त एकाध ग्रन्थ तो ठीक एकाध श्लोक भी जीवन का अमूल्य पाथेय बन जाता है। महाबल (मलयासुन्दरी) को केवल एक श्लोक के प्रभाव से जीवनभर आश्वासन एवं प्रेरणा मिलते रहे थे।
* हमारी आत्मा में दो शक्तियां हैं - ज्ञातृत्व शक्ति एवं कर्तृव्य शक्ति, ज्ञान एवं वीर्य शक्ति । इन दोनों शक्तियों के प्रकट होकर निर्मल बनने पर ही आत्मा का कल्याण होता है । दोनों शक्तियों का समान विकास होना चाहिये, एकांगी विकास नहीं चलता ।
भुज में गाय ने धक्का लगाया, तब मेरे एक पांव से चलना बंद हुआ । एक पांव बराबर होने पर भी चला नहीं जा सकता । चलने के लिए दो पांव चाहिये । मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए
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