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________________ भी ज्ञान एवं क्रिया दोनों चाहिये । एक का अभाव रहा तो मोक्ष मार्ग पर चला नहीं जा सकेगा । संसार के मार्ग पर भी हम इस ज्ञान एवं क्रिया की शक्ति से ही चलते हैं । आत्म-शुद्धि करने वाली अपनी शक्तियों को हम ही कर्म-बन्धनकारी बनाते हैं, जिससे संसार का सृजन होता * 'हुं कर्ता परभावनो, इम जिम जिम जाणे । तिम तिम अज्ञानी पड़े, निज कर्म ने घाणे ॥ ___मैं वक्ता हूं, लेखक हूं, शिष्यों को तैयार करने वाला हूं - ऐसा विचार भी परभाव का ही है। जब तक ऐसे विचार होंगे, तब तक कर्म की घाणी में पीलाना ही है ।। * पूज्य प्रेमसूरिजी महाराज को खादिम-स्वादिम की जीवनभर प्रतिज्ञा थी । उन्होंने जीवन में कभी भी फल आदि का उपयोग नहीं किया । केवल स्वाद के लिए फलों के रस वहोरते हों तो छ: काय की दया कहां गई ? "अहो ! अहो ! साधुजी समताना दरिया" यह सज्झाय सुनी है न ? स्कंधक मुनि की जीवित अवस्था में चमड़ी उधेड़ी गई थी । आप यह नहीं माने कि ऐसे महान मुनि पर कर्मसत्ता ने अन्याय किया था । . पूर्व जन्म में उन्होंने केवल छोटी सी भूल की थी । चीभड़ी की अखण्ड छाल उतारते समय अभिमान किया था । उसी चीभड़ी का जीव राजा बना और वह स्कंधक मुनि बना ।। छोटी सी भूल का दण्ड ऐसा हो सकता है तो अपनी अनगिनत भूलों के लिए हम पर क्या बीतेगी ? तनिक कल्पना तो करिये । गर्मी (उष्णता) प्रतीत होती है तो छास पी जा सकती है, फलों का रस आवश्यक नहीं है । * शस्त्र के बिना योद्धा एवं योद्धा के बिना शस्त्र व्यर्थ हैं, उस प्रकार ज्ञान के बिना चारित्र एवं चारित्र के बिना ज्ञान निरर्थक है (गाथा ७५) * दर्शनहीन को ज्ञान नहीं मिलता । ज्ञान हीन को चारित्रगुण नहीं मिलता । गुणहीन को मोक्ष नहीं मिलता । मोक्षहीन को [कहे कलापूर्णसूरि - २0oooooooooooooooooo0 ८९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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