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________________ एक अंधा व्यक्ति दीपक लेकर निकला । आंखो से देखते हुए एक व्यक्ति ने उसे दीपक लेकर निकलने का कारण पूछा, तब उस अन्धे ने उत्तर दिया, 'आपके जैसे आंखोवाले मुझ से टकरा न जाये' उसके लिए दीपक रखा है। अन्धा भले ही दीपक रखकर सन्तोष माने, परन्तु वास्तव में क्या वह दीपक रख कर भी देख सकता है ? * साध्वियें गंभारे में जाकर भगवान के दर्शन करें यह उचित नहीं है । यह आशातना है । जघन्य से नौ और उत्कृष्ट से साठ हाथ का अवग्रह रखना चाहिये । पहले मैं भी गंभारे में जाता था, परन्तु बाद में यह सोचकर कि अन्य साधु भी यह परम्परा चलायेंगे, मैंने गंभारे में जाना बंद कर दिया । हमारा शरीर अशुद्ध होता है, जिससे आशातना होती है । मन्दिर की तरह गुरु आदि की भी आशातना टालनी चाहिये । अविनय एवं आशातना में अन्तर हैं । अविनय की अपेक्षा आशातना भयंकर है। अविनय अर्थात् कदाचित् आप भक्ति नहीं करे वह; परन्तु आशातना अर्थात् गुरु को हानि हो ऐसा कुछ करना वह । * ज्ञान गुरु के अधीन हैं । गुरु विनयके अधीन है । योगोद्वहन अर्थात् विनय की ही प्रक्रिया । इसी कारण से योगोद्धहन के बिना ज्ञान ग्रहण नहीं किया जा सकता । शास्त्रों में ज्ञान नहीं, विनय का महत्त्व माना है । * विनय से ज्ञान की रुचि बढ़नी चाहिये । तदुपरान्त ज्ञानवृद्धि के द्वारा विनय-वृद्धि होती ही रहनी चाहिये । विनय के द्वारा साध्य ज्ञान है । 'मैं विनीत (विनयी) बन गया हूं, ज्ञान की क्या आवश्यकता है ?' यह मान कर ज्ञान प्राप्त करना बन्ध करने का विचार ही अविनय का सूचक है । ___ माषतुष मुनि चाहे पढ़े नहीं थे, परन्तु पढ़ने के लिए प्रयत्न तो चालु ही था । विनय, विनय और विनय की ही मैंने बात की । इसका अर्थ यह नहीं है कि ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं । अनेक व्यक्ति ऐसे भी होंगे जिन्होंने पुस्तकें ताक पर रख दी होंगी । (कहे कलापूर्णसूरि - २0mmooooooommonamoon ८१)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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