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________________ yoolk-500 उपधान प्रसंग, भडिया - कच्छ, वि.सं. २०४६ ३१-३-२०००, शुक्रवार चैत्र कृष्णा-११ : धंधुका * ज्ञान प्रयत्न करने से मिल सकता है । गुण केवल प्रयत्न करने से नहीं मिल सकते । इसके लिए भगवद्-अनुग्रह चाहिये । * भगवान महावीर के पश्चात् आर्य महागिरि ने आर्य सुहस्ति के साथ सर्व प्रथम गोचरी-व्यवहार बंध किया था । आर्य सुहस्ति को प्रभावना पसन्द थी और आर्य महागिरि को संयम पसन्द था । * विनयादि गुण अल्प हो सकते हैं, परन्तु यदि ऐसा विचार भी उत्पन्न न हो तो कैसे पता चले कि 'ये गुण मुझ में अल्प हैं। भगवान की कृपा से ये मुझे प्राप्त करने ही हैं। आपको अपनी अविनय अखरे, आप के द्वारा गुरु को होने वाली परेशानी अखरे तो भी मेरा परिश्रम सफल है । * आप कदाचित् अधिक अध्ययन नहीं कर सको, परन्तु नित्य यदि केवल बीस माला गिनो और कायोत्सर्ग में ध्यान लगाओ तो भी आप आराधक बन सकते हैं । __ आप सुशिक्षित हैं लेकिन आप में विनय का अभाव हो तो उसका कोई मतलब नहीं है । अन्धे व्यक्ति के पास अरबों दीपक जल रहे हों परन्तु क्या लाभ ? ८० mmmooooooooooooooo
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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