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है । उपवास के दिन मन कितना निर्मल होता हैं ? आयंबिल में मन कितना निर्मल होता है ?
उज्जैन में मैं चतुर्दशी आदि के दिन चौविहार उपवास करके अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान के दरबार में पहुंच जाता । पूरा दिन वहीं भक्ति, ध्यान, आदि में व्यतीत होता ।
तप के द्वारा क्षयोपशम प्रकट होता है अतः योगोद्वहन में तप का विधान हैं ! बाह्य तप की शर्त इतनी ही है कि वह अभ्यन्तर तप के लक्ष्यपूर्वक होना चाहिये ।
साध्वीजियों को केवल (उत्तराध्ययन आचारांग) दो ही आगमों के जोग करने होते हैं ! इन दो आगमों में भी ४५ आगमों का सार है ।
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पांचवे आरे के अन्त में तो दशवैकालिक के चार अध्ययन ही रहनेवाले हैं । उनमें भी समस्त आगमों का सार है ।
'असंखयं' उत्तराध्ययन के चौथे अध्ययन की अनुज्ञा आयंबिल से ही हो सकती है । १३ गाथा करें तो ही अनुज्ञा हो सकती हैं । ऐसे अक्षर मिले है । नीवी की गडबड न करे । हम बहुत भूल जाते हैं ।
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यशोविजयजी अपना अनुभव बताते हुए कहते है किसी भी एक पदार्थ का आलम्बन ले लें । उसमें पूर्णरूप से एकाकार हो जायें । अन्य कुछ भी न सोचें । चित्त स्वत: ही अदृश्य हो जायेगा । जिस प्रकार लकड़े बंध हो जाने पर आग स्वयं बुझ जाती है ।
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परन्तु यह स्थिति अनुभव की परिपक्वता के बाद आती है, तुरन्त नहीं आती । शान्त हृदयी व्यक्तियों के शोक, मद, मत्सर, कदाग्रह, विषाद, शत्रुता आदि समस्त आवेश नष्ट हो जाते हैं । इसी जीवन में यह सम्भव है । इसमें अन्य किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं हैं ।
(कहे कलापूर्णसूरि- १ ******
'हमारा स्वयं का ही अनुभव इसमें साक्षी है', यह कहते हुए यशोविजयजी ने अपनी अनुभूति खुली रख दी हैं ।
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