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चैत्यवन्दन भी विशिष्ट योग बन जाये ।
जब मैं सूरत में होता हूं तब सूरजमण्डन पार्श्वनाथ के दर्शन करने अवश्य जाता हूं। उनकी नयनरम्य प्रतिमा का आज भी स्मरण होता है।
द्वितीय आलम्बन है वर्गों का, विशिष्ट पद वाक्य की रचना वाले स्तवन आदि । इनमें नवकार सब से उत्तम है ।
तीसरा आलम्बन - उत्तम पुरुष, विहरमान सीमंधर स्वामी आदि तथा उपकारी आचार्य भगवन्त आदि । विनयविजयजी तथा यशोविजयजी ने अपने गुरु को आगे रखे थे ।
उत्तम पुरुष की निश्रा में हमारा मन व्यग्रतारहित होता है, मन बोझरहित हो जाता है, इसका अनुभव होगा ।
आपको यहां कोई फरक लगता है ? अलग चातुर्मास हो तो अपने ऊपर जिम्मेदारी होती है । यहां कोई जिम्मेदारी है ? कोई व्यक्ति आये तो बड़े महाराज का मार्ग बता देना है।
आलम्बन यदि प्रशस्त हो तो प्रायः भाव उत्तम होंगे ही । 'प्रायः' इस लिए कि अभव्य जीवों आदि को उत्तम भाव न भी आयें ।
* 'उत्तम संगे रे उत्तमता वधे ।'
प्रभु के गुण उन्हें प्रसन्न करने के लिए नहीं हैं । वे तो सब प्राणियों पर प्रसन्न ही हैं, परन्तु हम यदि प्रभु का गुण-गान करें तो वे गुण हममें अवश्य आयेंगे । वे हमारे लिए लाभदायक बनते हैं ।
'जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग...'
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