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चिंतन में मग्नता, वि.सं. २०५७
✿ साधना बढने के साथ आत्म-शक्ति बढती है । साधना बढाने के लिए भक्ति एवं श्रुत- अभ्यास बढाने चाहिये । तदनुसार चारित्रमय जीवन जीना चाहिये । ये तीनों अनुष्ठान गुणसमृद्धि बढाते हैं, दोष नष्ट होते हैं । दवा वही कहलाती है जो रोग मिटाये तथा शरीर को पुष्ट भी करें ।
१९-११-१९९९, शुक्रवार का. सु. ११
✿ प्रभु की आज्ञा का भाव-धर्म के साथ सम्बन्ध है । यह बात उपदेश - पद में सविस्तर कही है ।
शुद्ध आज्ञायोग से अध्यात्म
अध्यात्म से क्रिया-योग
(कहे कलापूर्णसूरि - १
क्रिया-योग से विमर्श एवं विमर्श से तात्त्विक स्पर्शना । तत्त्वस्पर्शना से पुन्यानुबंधी पुन्य का बन्ध होता है । + दवा तीन प्रकार से जानी जाती है :
१.
रोग निवृत्ति । आरोग्य
२.
३. सौन्दर्य तुष्टि पुष्टि प्रसन्नता की वृद्धि । जिनाज्ञा भी तीन कार्यों से परखी जाती है :
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वृद्धि