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भगवान के जितना ही मूल्य आगमों का गिना जाता है । भगवान के विरह में तो आगमों का मूल्य अनेक गुना बढ़ जाता
यदि हमें आगम प्राप्त नहीं हुए होते तो हम क्या करते ? चुनाव प्रचारकों की तरह केवल भाषण देते, जिनमें स्व-प्रशंसा एवं पर-निन्दा के अलावा कुछ नहीं होता । ।
अपेक्षाकृत मूर्ति से भी आगम बढकर हैं । यह मूर्ति पूज्य है, ऐसा बतानेवाले भी आगम ही हैं ।
आंखें और पैर दोनों में मूल्यवान कौन है ? आंखें मूल्यवान हैं । पैर चलने का कार्य करते हैं, परिश्रम का कार्य करते हैं । आंखें आराम से उपर बैठी हैं, विशेष कोई कार्य करती प्रतीत नहीं होती, फिर भी आंखें ही मूल्यवान गिनी जाती है, पैरों को कांटे, विष्टा, जीव-हिंसा आदि से बचानेवाली आंखें हैं । पै = क्रिया । आंखें = ज्ञान ।
इसीलिए उपाध्याय यशोविजयजी ने 'ज्ञानसार' में ज्ञानरहित क्रिया एवं क्रिया-रहित ज्ञान के बीच जुगनु और सूर्य के जितना अन्तर बताया है ।
ज्ञान की आराधना से कितना लाभ ? ज्ञान की विराधना से कितनी हानि ?
यह हम वरदत्त और गुणमंजरी की कथा से अनेकबार सुन चुके हैं।
वरदत्त ने पूर्व के आचार्य के भव में वाचना आदि को बन्ध करके तथा गुणमंजरी ने सुन्दरी के भव में पुत्रों को अनपढ रखकर पुस्तकों आदि को जलाकर ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन किया था ।
दोनों गूंगे उत्पन्न हुए ।
ज्ञानपंचमी की आराधना से वे दोनों सुखी हुए । हम भी ज्ञान की विराधना कर-करके कई बार वरदत्त गुणमंजरी जैसे जड़ एवं गूंगे बने होंगे, लेकिन उसके बाद का उत्तरार्द्ध हमारे जीवन में घटित नहीं हुआ होगा । ज्ञानपंचमी की आराधना से हम लाभान्वित नहीं हुए होंगे । यदि लाभान्वित हुए होते तो आज हमारी ऐसी दशा नहीं होती ।
कहे कलापूर्णसूरि - १
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कहे